तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी
उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
अब क्या तरकीब -ए-मुलाक़ात बनेगी
अब क्या तरकीब -ए-मुलाक़ात बनेगी
ये हम से न होगा कि अब किसी और को चाहें
ऐ इश्क़! हमारी अब न तेरे साथ बनेगी
ऐ इश्क़! हमारी अब न तेरे साथ बनेगी
हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी
ये क्या के बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी
____________________________ जाँ निसार अख्तर
आपको ग़ज़लों का शौक़ है ,ऐसा लगता है.
जवाब देंहटाएंतो,आइये मेरी ग़ज़लों की तरफ यानी मेरे ब्लॉग पर.
कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.co
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जवाब देंहटाएंये हम से न होगा कि अब किसी और को चाहें
ऐ इश्क़! हमारी अब न तेरे साथ बनेगी...
Awesome !
Lovely couplets !
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