गुरुवार, अक्तूबर 21, 2010

सौ चांद भी चमकेंगे

सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी
उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
अब क्या तरकीब -ए-मुलाक़ात बनेगी
ये हम से न होगा कि अब किसी और को चाहें
ऐ इश्क़! हमारी अब न तेरे साथ बनेगी
हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी
ये क्या के बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी 
____________________________  जाँ निसार अख्तर  

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपको ग़ज़लों का शौक़ है ,ऐसा लगता है.
    तो,आइये मेरी ग़ज़लों की तरफ यानी मेरे ब्लॉग पर.

    कुँवर कुसुमेश
    ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.co

    जवाब देंहटाएं
  2. .

    ये हम से न होगा कि अब किसी और को चाहें
    ऐ इश्क़! हमारी अब न तेरे साथ बनेगी...

    Awesome !

    Lovely couplets !

    .

    जवाब देंहटाएं