गुरुवार, अक्तूबर 21, 2010

सौ चांद भी चमकेंगे

सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी
उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
अब क्या तरकीब -ए-मुलाक़ात बनेगी
ये हम से न होगा कि अब किसी और को चाहें
ऐ इश्क़! हमारी अब न तेरे साथ बनेगी
हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी
ये क्या के बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी 
____________________________  जाँ निसार अख्तर  

बुधवार, अक्तूबर 20, 2010

प्रेम रोग या लोवेरिया -एक वृस्तित विवेचन

आइये आज हम बात करते है एक असामान्य रोग की | इकिस्वी सदी के इस वैज्ञानिक युग में जहा कोई भी कार्य बिना स्वार्थ- कारण के नही किया जा रहा है वही प्रेम रोग जैसे रोग से लोग कष्ट में है क्यूँ की इस रोग से पीड़ित रोगी अकारण ही लोगो को बस देता ही रहता है बदले में उनसे कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा नही रखता। जिस कारण उसका परिहास तक हो जाता है  आइये जानते है कुछ  इसके सम्बन्ध में


रोग का नाम - प्रेम रोग, लव ,प्यार या कुछ भी, अलग- अलग समाजो में इसका अलग-अलग नाम है
यह मानव -जाति में ही पाया जाता है पर मतान्तर से यह पशु -पक्षियों में भी देखा गया है


इतिहास - इस रोग विषय में पूरे प्रमाण तो नही मिलते किंतु ऐसा अनुमान है की 
सृष्टीके आरम्भ से ही इस रोग की सृष्टी थी
विश्व की सर्वप्रचिन सिन्धु-सभ्यता में इसके प्रमाण मिले है  रामायण -महाभारत काल में भी
इसके रोगियों ने बड़ा उत्पात मचाया था। संसार के हर संस्कृति -सभ्यता में इसके प्रमाण है जैसे-
रोमियोजूलियट (रोम), हीर-राँझा (पंजाब,भारतऔर लैला -मजनू (अरब की भूमि ) इन सभी को
आधुनिक इतिहासकार और समाज शास्त्री इस रोग का प्रथम रोगी और खोजकर्ता स्वीकार करते है 
लैला -मजनू तो इस महारोग का पर्याय ही बन गए है| 

रोग का प्रकार -यह एक मानसिक रोग है | जो कई बार अनुवांशिक भी हो सकता है | 
अरस्तु, प्लेटो और जिब्रान जैसे दार्शनिको ने इसे आत्मा से (soul ) जोड़ा है..    
(नोट- आधुनिक चिकित्सा -विज्ञान आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है )


मानसिक रोगों में इसकी कटेगरी-  A +

रोग की संभावित आयु - 16 से 35 वर्ष असमान्य मामलो में आयु  सीमा नही भी होती


इस रोग के होने का कारण - ठीक- ठीक तो इसके कोई कारण ज्ञात नहीं होते, किन्तु अनुमान है की दाहिने मस्तिस्क  के ऊपर की तरफ ,जहा से मनुष्य की सारी भावनात्मक गतिविधियाँ संचालित होती है वही पर किसी अनियमितता के कारण किसी कीमियागिरी के चलते एक उत्प्रेरण उत्पन्न होता है जिस कारण यह रोग हो जाता है |
किसी विपरीत लिंग के व्यक्ति के संपर्क में आते ही (पश्चिमी देशो में सम लिंगी भी  हो सकता है ) रोगी का संतुलन बिगड़ जाता है और वो असमान्य प्रतिक्रिया और व्यवहार करने लगता है|
ख़ास बात ये है की व्यक्ति का चुनाव रोगी द्वारा पूर्व- नियोजित नहीं होता और कई बार यह यकायक ही होता है  

नोट - यह एक संक्रामक रोग हैरोगी के संपर्क में आने से इसका संचरण हो सकता है । बचाव के लिए रोगी से दूर रहे 
और अगर समपर्क में रहना ही पड़े तो अपने कानो को बंद रखे अन्यथा  रोगी के विचार आपको भी संकमित कर सकते है|


~ व्यक्ति को आगे से लक्ष्य (object) कहा जायेगा|


लक्षण-
असल में यह एक रोग ही नही अपितु रोगों का समूह ही है यथा -
(1) उन्माद 
(2) अवसाद 
(3) अनिद्रा
(4) अनोरेक्सिया या आहार की अनियमितता 
(5) obsessive-compulsive disorder या जुनूनी विकार  
(6) उच्च रक्तचाप अथवा निम्न भी- मूलतया परिस्थितियों पर निर्भर 

सामान्य प्रक्रिया - इस रोग में रोगी अजीब सा व्यवहार करना शुरू कर देता है, अकारण ही खुश रहना और अकारण ही
दुखी हो जाना, किसी खास लक्ष्य के ही विषय में चिंतन करते रहना | इस रोग में रोगी अपने जीवन का अधार उस लक्ष्य
को बना लेता है जिसके प्रेम में वो पड़ गया होता है | रोगी उसी के सुख दुःख की चिंता करता रहता है अपना कोई विचार
नहीं करता| उसी में उसे असीम आनंद की अनुभूति होती है

उपचार एवं बचाव ~ अभी तक यह एक लाइलाज रोग है, किन्तु यदि शुरूआती स्तरों पर ही इसका पाता चल जाए तो इसका इलाज़ किया जा सकता है | लक्षणों का पाता चलते ही  रोगी को तत्काल लक्ष्य से दूर हो जाना चाहिए
उससे कतई बात या सपर्क ना रखे और हो सके तो उस जगह से अपना तबादला करवा ले |

पुरुष अपनी जेबों में राखी ले कर चले | यदि लक्षण ठीक ना लगे तो तुरंत राखी बधवा ले |
सगीत ना सुने , मीठा ना खाएं और किसी से ज्यादा बात ना करे
स्त्रीयां बचाव के लिए लक्ष्य से दूरी बनायें , लक्ष्य की तरफ कभी भूल कर भी ना देखें
लक्ष्य के सामने मौन का ही प्रयोग करे |


और यदि यह रोग गहराई से लग चूका हो तो संभवतः इसका इलाज़ समय ही कर सकेगा |
कई मामलो में समय ने रोग को कम कर दिया है लेकिन बहुसंख्यक मामलों में समय का कोई असर नहीं
पाया जाता | असल में लक्ष्य बदल जाता है रोग वैसा ही बना रहता है

इन तमाम बातों और को पढ़ कर अगर कोई एक आपको बार- बार याद आ रहा है
तो  फिर भी आप इस रोग में पड़ चुके है........ इसलिए

मजें करे
क्यूंकि आप किस्मत वाले हैं ...

सोमवार, अक्तूबर 18, 2010

आज की रावण- लीला

दशहरा अभी- अभी गुजरा है...और कुछ लोगो ने रावण के पुतले जलाकर परंपरा का निर्वहन भी कर लिया होगा |
आज पता नहीं क्यूँ मुझे पचौरी जी याद हो आये.. (प्यार से उन्हें पिचकारी जी भी कहता हूँ.. हर दम उनके मुह से
निकलती पान की पिको के कारण )  इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) निवासी, पेशे से वकील है..त्रिपुंड धारी, शिव भक्त...
बचपन से ही उनके अंदर अभिनय के संक्रामक कीटाणु प्रवेश कर गए थे.. जो समय बे- समय जोर मरते रहते हैं |
और यही उनकी कमजोरी भी है ....
**
करीब साल भर पुरानी बात होगी..
बिना किसी पूर्व सुचना के पचौरी जी मेरे कार्यालय आ धमके.. आते ही जैसे की वो हमेशा ही करते है
पान थूकते से कहा- शुक्ला  जी? आप तो मिलते ही नहीं..तो लो जी हमी आ गए हैं.. सरप्राईज़ दे दिया ना..
औपचारिक बात- चीत के बाद वो तुरंत फ़ार्म में आ गए...दिलीप साहब जैसे ट्रेजिक अंदाज़ में बोले - 31 बरस हो गए दुनिया में आये हुए अभी तक कुछ उखड़ा नहीं है एक्टिंग में.. अभी दिल्ली की सबसे बड़ी राम- लीला में रावण के रोल के लिए आडिशन दिया है | और सुर्प- नखा के रोल के लिए...
आपकी भाभी जी का प्रस्ताव दे आया हूँ .. अरे भाई मैंने सोचा..
उनके नखरे भी तो सुपर है इसलिए सुर्प- नखा तो उनसे अच्छा कोई निभा ही नहीं सकता.. नमस्कार कहा है आपको |
पिचकारी जी ने अपने मज़ाक से माहौल थोडा हल्का किया था..

साहब.. कुंडली- कथा क्या कहती है ?? हमें तो रोल मिल जायेगा ना !!
मैंने यूं ही पुछा कितने आवेदक थे.. आपके अलावा इस रोल के लिए ?
23 ... उन्होने जवाब दिया |
और राम जी के लिए ??
3 ... उनका उत्तर आया |
मैंने कहा- इतने कम लोग! राम के पात्र के लिए ?? राम तो नायक है उसके लिए बस तीन ही लोग!! आप ने राम के लिए आडिशन क्यूँ नहीं दिया ? चहरे पर लालित्य तो है ही आपके, अगर दिया होता तो जरुर चुन लिए जाते |

वो जैसे छुटते ही बोले... अरे हम बौड़म थोड़े ही है जो राम जी बने, सच्ची शुक्ला जी... इतना अन-रीअल,
स्वप्न सरीखा करेक्टर हमने आज तक नहीं देखा है...
अरे कोई सौतेली माँ के कहने से क्या अपना घर छोड़ देता है.. बताइए ? वो भी
14 साल के लिए.. अपना सबकुछ छोड़ दे | क्यूँ ?? काहे भाई !! किसके लिए.. हैं..
ये कोई बात हुई भला...

और लौट के आये तो पाता नहीं किस झोक में पत्नी को ही छोड़ दिया बड़ा गड्ड-मद्द है सबकुछ 

और ये एक नारी व्रत !!! ये क्या बला है ?? आप ही बताओ अब क्या हम किसी
महिला को देखे भी नही..हे ईश्वर..अब ये कहा का न्याय है .. उनका क्या है ! वो तो मर्यादा पुरुषोत्तम है..
कर के चले गए | मुसीबत तो मर्दों के लिए हो गई ना..
पर जो आदर्श राम ने बनाए है उन्ही को तो सब तक पहुचने के लिए राम लीलाएं होती है ? मैंने उन्हें टोका...
अरे शुक्ला जी हम भी कलाकार है जन-मत को जानते है भईया.. लोग बोल्ड पकड़ते है... कोल्ड नहीं |

पूरी राम- लीला में एक्को जगह  राम जी ने सीता जी को छुवा तक नहीं है... एक वर-माला डाली है वो भी
दूर-दूर से बस...उससे अच्छा तो रावण है..कम से कम सीता जी को जबरजस्ती पकड़ कर
पुष्पक विमान पे बिठाता तो है...लोगो को आज कल भौकाल- पुराण चाहिए..
दिखावा मिले तो बस और क्या ?? सत्य, कर्त्तव्य, सेवा, धैर्य, नियम  ये सब ईश्वर के जैसे ही है..
सुना तो सबने है पर देखा किसी ने भी नहीं.. लोगो को इसका मतलब नहीं जानना..
राम जी को जीवन भर प्रोब्लम ही तो रहा है..
रावण का क्या है.. जिंदगी मस्ती से काटी जो अच्छा लगा वो किया
और अंत में क्लाइमेक्स में जरा सा फाइट कर के भगवान् के धाम  पहुच गया..
वो क्या है  रावण के करेक्टर में पब्लिक खुद को जोड़ पाती है...
राम जी तो दूसरी दुनिया के लगते है...

पर जीतते तो हमेशा राम ही है.. और पूजा भी उन्ही की होती है.. मैंने उनके भाषण में उन्हें याद दिलाया..

रावण तो अपने बीच का है उसमे कमियां है बुराइयां है..ये बताता है जो चाहिए उसे कैसे भी हासिल करो..
अच्छा बुरा रास्ता चाहे जैसा भी हो काम बन जाना चाहिए | क्या हम ग़लत करते हुए एक बार भी रुकते है ?
सोचते है की हमारे ग़लत कामो का असर दुसरो पर कैसा पड़ेगा ... अरे यहाँ कोई राम थोड़े है जो सोचेगा
 ...सब ...

राम के आदर्शो के लिए चाहे भले ही हम उन्हें पूजते रहे ... पर आकर्षित तो हमें रावण ही करता है..
नहीं तो क्या कारण है की राम के इस देश में रावण के लिए मंदिर बनाये जा रहे है...
फिल्मे बनाई जा रही है ??
मैं तो कहता हूँ अब राम- लीला का नाम बदल कर रावण- लीला रख देना चाहिए...
क्या कहते है शुक्ला जी ??
मेरे रोल का क्या होगा ?? पिचकारी जी पिकते हुए दोहराते हैं...

आप रावण तो बन ही जाओगे.. मेरा उत्तर मैंने दिया ...
बस- बस धन्यवाद .. आभार... भोले भंडारी की कृपा रही तो समझिये आग ही लगेगी मंच पर...
अब ज्यादा समय नहीं लूँगा आज्ञा  दें.. कही और भी हो आऊँ.. इतनी दूर आया हूँ तो..
वो इतने उत्साह में थे की मेरी बात सुन भी ना पाए होंगे और निकल दिए जैसे बैरंग लिफाफा हो गए थे...

वो तो चले गए और मैं देर तक यही सोचता रहा ... रावण -लीला......

शनिवार, अक्तूबर 16, 2010

नारी... तुम केवल श्रद्धा हो

नारी..  इस सृष्टि में इश्वर की बनाई एक सर्व -श्रेस्ठ कृति..
संसार- सृष्टि  में तुम ब्रम्ह की सहयोगिनी
संतान के रूप में प्राण को आश्रय और पोषण देने वाली धविता ..
नारी तुम केवल श्रद्धा हो !

नारी.. माँ के रूप में संतान से निस्वार्थ प्रेम करने वाली
संस्कार और विचार से  पुल्लवित, पोषित करने वाली
इश्वर सामान अपनी करुणा बरसाने वाली कारुणि..  
नारी  तुम केवल श्रद्धा हो !

नारी..सहोदरी बनकर  सदा ही स्नेह लुटाने वाली..
एक श्रेष्ठ आलोचक,  एक  पथ-प्रदर्शक की भाति
सदा  ही भाई के दोषों को उजागर करने वाली प्रेक्षणी..
नारी तुम केवल श्रद्धा हो !

नारी.. बेटी के रूप में माँ- पिता को सर्वोच्च रखने वाली.. 
पिता के मान को अपना मान बनाकर जीने वाली 
दो- दो कुलों के मर्यादा की रक्षा करने वाली रक्षिणी..
नारी तुम केवल श्रद्धा हो !

नारी.. अर्धांगिनी के रूप में पति की सह-चरी  होकर.. 
हर्ष, विषाद में सदा ही उसका साथ देने वाली संगिनी 
जीवन- यज्ञ में पति धर्मं निभाने वाली धर्मिणी..
नारी तुम केवल श्रद्धा हो !

नारी..कभी प्रेयसी तो कभी मित्र  बन कर.. 
जीवन में प्रेरक- उर्जा का संचार करने वाली
जीवन को आनंद रूप बनाने वाली प्रेरणा...
नारी तुम केवल श्रद्धा हो !  


हे भारत की नारी..  हर अर्थ में पुरुष को पूर्ण करने वाली हे पूर्णा!

किस तरह तुम अपने संवेगों को छुपा लेती हो? कैसे सब कुछ सह लेती हो धरा की तरह ? कैसे बस दो बूंद आंसू  तुम्हारे   बड़े से बड़े दुःख को दूर कर देते है ? एक पल में कैसे सब सह लेती हो ?

हे आर्यवर्त  की नारी इतना सहज तो मात्र तुम्ही हो सकती हो!
शायद यही कारण है की पुरुष सदा तुम्हारा आश्रय लेता है , हलाकि पुरुष है न तो स्वाभाव तया तो वो इसे प्रकट नहीं करता
पर ध्रुव सत्य सा एक सत्य ये है की   
हर पुरुष कभी न कभी तुम्ही से प्रेरणा और संकल्प प्राप्त करता है ! फिर वो चाहे माँ के रूप में हो , बहन के रूप में हो, पत्नी के रूप में या प्रेमिका के रूप में ! इस कारण पुरुष की  श्रेष्ठता और सफलता असल में तुम्ही से उपजी है.. इस कारण हे नारी इश्वर के बाद तुम्ही सर्व-श्रेष्ठ कही जाती हो ! तुम जन्म दात्री हो तुम धैर्य, दया, करुणा, त्याग, तेज और शक्ति में पुरुष से निर्विवाद रूप से ऊपर हो इस कारण तुम पुरुष से  कही श्रेष्ठ हो !
इन गुणों से  ही तुम्हारा आदर है.. गर्व करो की इश्वर ने तुम्हे नारी बनाया उसने तुम्हे इस योग्य  पाया..तुम चाहो तो नर को नारायण बना दो.. और चाहो तो नारायण को भी  साधारण बना दो..असल में चुनाव तुम्हारा ही है श्रेष्ठे..

पूछो खुद से क्या नारी होना इतना सरल है ?
यह केवल नारी ही जानती है..  क्यूँ की  

......नारी तुम केवल श्रद्धा हो !!!! 

सोमवार, अक्तूबर 11, 2010

स्त्री विमर्श

http://zealzen.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80

ये अवलोकन आप को , मुझको, हम सब को,  कुछ सिखा सकता है प्रेरित कर सकता है.. मैं आशा करता हूँ ... की इस तरह की विचार-शक्ति हम सब की हो.. और हम सब इस प्रकार के सार्थक लेख लिख सके...
मैं ब्लॉग के सदस्यों, अनुसरण-कर्ताओं, पथिको (Visitors) से यह अपील करता हूँ,  की इस लेख को एक बार अवस्य पढ़े...

काफिर...