सोमवार, अक्तूबर 18, 2010

आज की रावण- लीला

दशहरा अभी- अभी गुजरा है...और कुछ लोगो ने रावण के पुतले जलाकर परंपरा का निर्वहन भी कर लिया होगा |
आज पता नहीं क्यूँ मुझे पचौरी जी याद हो आये.. (प्यार से उन्हें पिचकारी जी भी कहता हूँ.. हर दम उनके मुह से
निकलती पान की पिको के कारण )  इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) निवासी, पेशे से वकील है..त्रिपुंड धारी, शिव भक्त...
बचपन से ही उनके अंदर अभिनय के संक्रामक कीटाणु प्रवेश कर गए थे.. जो समय बे- समय जोर मरते रहते हैं |
और यही उनकी कमजोरी भी है ....
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करीब साल भर पुरानी बात होगी..
बिना किसी पूर्व सुचना के पचौरी जी मेरे कार्यालय आ धमके.. आते ही जैसे की वो हमेशा ही करते है
पान थूकते से कहा- शुक्ला  जी? आप तो मिलते ही नहीं..तो लो जी हमी आ गए हैं.. सरप्राईज़ दे दिया ना..
औपचारिक बात- चीत के बाद वो तुरंत फ़ार्म में आ गए...दिलीप साहब जैसे ट्रेजिक अंदाज़ में बोले - 31 बरस हो गए दुनिया में आये हुए अभी तक कुछ उखड़ा नहीं है एक्टिंग में.. अभी दिल्ली की सबसे बड़ी राम- लीला में रावण के रोल के लिए आडिशन दिया है | और सुर्प- नखा के रोल के लिए...
आपकी भाभी जी का प्रस्ताव दे आया हूँ .. अरे भाई मैंने सोचा..
उनके नखरे भी तो सुपर है इसलिए सुर्प- नखा तो उनसे अच्छा कोई निभा ही नहीं सकता.. नमस्कार कहा है आपको |
पिचकारी जी ने अपने मज़ाक से माहौल थोडा हल्का किया था..

साहब.. कुंडली- कथा क्या कहती है ?? हमें तो रोल मिल जायेगा ना !!
मैंने यूं ही पुछा कितने आवेदक थे.. आपके अलावा इस रोल के लिए ?
23 ... उन्होने जवाब दिया |
और राम जी के लिए ??
3 ... उनका उत्तर आया |
मैंने कहा- इतने कम लोग! राम के पात्र के लिए ?? राम तो नायक है उसके लिए बस तीन ही लोग!! आप ने राम के लिए आडिशन क्यूँ नहीं दिया ? चहरे पर लालित्य तो है ही आपके, अगर दिया होता तो जरुर चुन लिए जाते |

वो जैसे छुटते ही बोले... अरे हम बौड़म थोड़े ही है जो राम जी बने, सच्ची शुक्ला जी... इतना अन-रीअल,
स्वप्न सरीखा करेक्टर हमने आज तक नहीं देखा है...
अरे कोई सौतेली माँ के कहने से क्या अपना घर छोड़ देता है.. बताइए ? वो भी
14 साल के लिए.. अपना सबकुछ छोड़ दे | क्यूँ ?? काहे भाई !! किसके लिए.. हैं..
ये कोई बात हुई भला...

और लौट के आये तो पाता नहीं किस झोक में पत्नी को ही छोड़ दिया बड़ा गड्ड-मद्द है सबकुछ 

और ये एक नारी व्रत !!! ये क्या बला है ?? आप ही बताओ अब क्या हम किसी
महिला को देखे भी नही..हे ईश्वर..अब ये कहा का न्याय है .. उनका क्या है ! वो तो मर्यादा पुरुषोत्तम है..
कर के चले गए | मुसीबत तो मर्दों के लिए हो गई ना..
पर जो आदर्श राम ने बनाए है उन्ही को तो सब तक पहुचने के लिए राम लीलाएं होती है ? मैंने उन्हें टोका...
अरे शुक्ला जी हम भी कलाकार है जन-मत को जानते है भईया.. लोग बोल्ड पकड़ते है... कोल्ड नहीं |

पूरी राम- लीला में एक्को जगह  राम जी ने सीता जी को छुवा तक नहीं है... एक वर-माला डाली है वो भी
दूर-दूर से बस...उससे अच्छा तो रावण है..कम से कम सीता जी को जबरजस्ती पकड़ कर
पुष्पक विमान पे बिठाता तो है...लोगो को आज कल भौकाल- पुराण चाहिए..
दिखावा मिले तो बस और क्या ?? सत्य, कर्त्तव्य, सेवा, धैर्य, नियम  ये सब ईश्वर के जैसे ही है..
सुना तो सबने है पर देखा किसी ने भी नहीं.. लोगो को इसका मतलब नहीं जानना..
राम जी को जीवन भर प्रोब्लम ही तो रहा है..
रावण का क्या है.. जिंदगी मस्ती से काटी जो अच्छा लगा वो किया
और अंत में क्लाइमेक्स में जरा सा फाइट कर के भगवान् के धाम  पहुच गया..
वो क्या है  रावण के करेक्टर में पब्लिक खुद को जोड़ पाती है...
राम जी तो दूसरी दुनिया के लगते है...

पर जीतते तो हमेशा राम ही है.. और पूजा भी उन्ही की होती है.. मैंने उनके भाषण में उन्हें याद दिलाया..

रावण तो अपने बीच का है उसमे कमियां है बुराइयां है..ये बताता है जो चाहिए उसे कैसे भी हासिल करो..
अच्छा बुरा रास्ता चाहे जैसा भी हो काम बन जाना चाहिए | क्या हम ग़लत करते हुए एक बार भी रुकते है ?
सोचते है की हमारे ग़लत कामो का असर दुसरो पर कैसा पड़ेगा ... अरे यहाँ कोई राम थोड़े है जो सोचेगा
 ...सब ...

राम के आदर्शो के लिए चाहे भले ही हम उन्हें पूजते रहे ... पर आकर्षित तो हमें रावण ही करता है..
नहीं तो क्या कारण है की राम के इस देश में रावण के लिए मंदिर बनाये जा रहे है...
फिल्मे बनाई जा रही है ??
मैं तो कहता हूँ अब राम- लीला का नाम बदल कर रावण- लीला रख देना चाहिए...
क्या कहते है शुक्ला जी ??
मेरे रोल का क्या होगा ?? पिचकारी जी पिकते हुए दोहराते हैं...

आप रावण तो बन ही जाओगे.. मेरा उत्तर मैंने दिया ...
बस- बस धन्यवाद .. आभार... भोले भंडारी की कृपा रही तो समझिये आग ही लगेगी मंच पर...
अब ज्यादा समय नहीं लूँगा आज्ञा  दें.. कही और भी हो आऊँ.. इतनी दूर आया हूँ तो..
वो इतने उत्साह में थे की मेरी बात सुन भी ना पाए होंगे और निकल दिए जैसे बैरंग लिफाफा हो गए थे...

वो तो चले गए और मैं देर तक यही सोचता रहा ... रावण -लीला......

1 टिप्पणी:

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    पूरे समाज में जो रावण-लीला चल रही है, उससे बचने के लिए ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम कि ज़रुरत है।

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