सोमवार, अप्रैल 11, 2011

चरित्रहीन

मनीषा आज खिड़की से उस पूरे चाँद को देख कर बहुत खुश है... उसे याद नहीं की ऐसा उसने इससे पहले कब देखा था.. उसने ओस की झीनी परत से झाकते चाँद को ऐसे देखा जैसे कोई बच्चा 
पहली बार अपनी माँ को देखता है | बहुत दिन बीत गए जब उसने सुबह के उगते सूरज और रात के
पूरे चाँद को नजर भर देखा हो | वो तो जैसे इन सब से भागने लगी है |
आज ठण्ड है.. पर वो ठण्ड उसे गर्माहट का एहसास दे रही है  | अपनी व्हील-चेयर पर बैठे अपनी ही बांहों में खुद को समेटे, आँखे बंद किये हुए अपने अतीत  में खो गई वो..
उसे याद है जब वो अपने सबसे सुन्दर रूप में दिखना चाह रही थी, उस मुलाकात के लिए उसने महीनो खुद को तैयार किया था..परियों सा रूप बना कर वो अपने सौंदर्य पर आज खुद रीझी जाती थी | शायद उसे पता था की आज विनय से वो आखरी  बार मिलेगी |
कितना सोच कर आई थी की आज विनय से सब वो कह देगी, जो तीन सालों में वो कह नहीं सकी
उसे बस इतना ही तो कहना था...
बस इतना ही की वो उसके बिना खुद की कल्पना नहीं करती |
बस इतना ही की वो उसकी बेमतलब सी जिंदगी में जीने की एक वजह बन गया है |
वो उसके लिए इतना ख़ास हो चूका है की जिंदगी भर बिना किसी मांग के वो उसे प्यार करती जायेगी |
वो बताना चाहती थी  की वो ये सब उससे कहने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाई |
उसे हमेशा लगता की एक अपाहिज लड़की जो विनय  के लिए एक दोस्त से ज्यादा कुछ भी नहीं है |
उसे वो कैसे कहेगी की उसने पता भी नहीं के न जाने कब पता नहीं कैसे उस लड़के को मन ही मन में अपना सब कुछ मान लिया था उसने....

और वो ये भी तो जानती है की उसका ये प्यार एक-तरफ़ा है.. उसे  हर बार एक अनजाना डर घेर लेता था के कही ये सब जानकर वो उससे दूर तो नहीं हो जायेगा | अभी जो कभी-कभी का साथ है सच जानने के बाद ये भी खत्म हो गया तो ? वो उस आवाज को सुने बिना कैसे जियेगी ? अगर सच जानकर वो दूर हो गया तो ?
और फिर ऐसा भी तो नहीं है की वो मनीषा को जानता नहीं है.. विनय सब जानता है शायद !!!
लड़के इतने अनाड़ी तो नहीं होते  लेकिन पता नहीं क्यूँ  वो अनजान बने रहना चाहता था |
और अब जब विनय की शादी हो चुकी है तब आज वो उससे अपना सच बताने की हिम्मत जुटा सकी है..अब उसे मालूम है की वो विनय को खो चुकी है, जिसे उसने कभी पाया ही नहीं उसके  खो जाने के डर ने उसे आज सच बोलने पर मजबूर कर दिया... हाँ ये सही नहीं है लेकिन बस बताने में तो कोई हर्ज़ नहीं , न बता कर वो विनय से धोखा ही तो कर रही है
बस उसे बता कर वो आज उसकी जिंदगी से चली जाएगी |
बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको इसके  लिए आज तैयार किया है
मनीषा ने कई बार कोशिश भी की उसे बताने की पर हर बार वो विनय के दूर चले जाने के ख्याल से  नहीं बोल सकी...

आखिर विनय ही तो मनीषा के लिए सबकुछ था | विनय से प्यार करना ही उसने अपने जीने का कारण बना लिया था
आज मनीषा का इरादा पक्का है.. वो जानती है आज नहीं कह सकी तो फिर उससे
वो कभी नहीं कह सकेगी |   विनय अब वो शहर छोड़ कर जा रहा था |
हर बार की तरह इस बार भी विनय से मिलते ही मनीषा सब कुछ भूल गई है.. उसे अब याद नहीं की उसे क्या कहना था आज फिर वो विनय के पाँव देखती रह गई | पागल लड़की, उसे विनय के पाँव इस जहां में सबसे सुन्दर लगते |
विनय ने ही बात शुरू की....दोनों में बाते हुई पर न होने जैसे ही ..
मनीषा ने कहा- शादी मुबारक हो | अब तो उस शहर में रहेंगे आप..कैसा मौसम है वहा का.. सोचती हूँ मैं भी वहां आ जाऊं..

विनय- हाँ अच्छा सोचा है आने वाले को कौन रोक सकता है तुम भी आ जाओ.. पर वहा Bachelors को कमरा Rent पर आसानी से नहीं मिलता |

मनीषा- मैंने शादी कर ली है... और बच्चे मेरे होंगे नहीं.. और दुबारा शादी मैं नहीं करुँगी |

ओ हाँ.. वो तस्वीर से शादी जिसे तुमने किसी को दिखाया नहीं था |
जिसे तुमने मानसिक विवाह का नाम दिया था |

हाँ... सारे रिश्ते मन के ही तो है.. मन अगर न स्वीकार करे तो क्या है..

हाँ तुम से कौन जीतेगा मेरी अम्मा ...

विनय याद है उस लड़के का क्या नाम है ?

हाँ.. बताया तो था.. विक्रम था शायद..!!

हाँ.. पर सच ये है  ऐसे किसी लड़के को मैं नहीं जानती... उस लड़के का नाम विनय है...विनय श्रीवास्तव | वो आप है..
मनीषा अपना सच कह चुकी थी.. जैसे सांस रुक गई थी उसकी..सांस ऐसे फूल गई जैसे मील भर
भाग कर किसी बच्चे की फूल जाए..

माहौल में ऐसी शांति छा गई.. की बहती हवा भी शोर करती सी लग रही थी..

वो ख़ामोशी विनय की आवाज़ से टूटी- मनीषा मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी.. तुम cheep हो..चरित्रहीन हो..तुमने मुझे धोखा दिया है... 
विनय के मुह से इतना सुनते ही उसे ऐसा  लगा अब वो क्या करे .. कहा जाए.. रोना आया पर खुद पर काबू कर लिया उसने जैसे हमेशा वो करती आई थी ..

वो बस इतना बोल सकी- मैं चरित्रहीन नहीं हूँ...
***************
फोन की घंटी ने उसकी तन्द्रा को तोडा था  वो अपने अतीत से बाहर आई... दूसरी तरफ मां की आवाज़ थी..
कैसी है मीनू.. मुंबई से कब आओगी ..याद है न परसों लड़के वाले आयेंगे..

अम्मा , मैं कह चुकी हूँ .. मैं दुबारा शादी नहीं करुँगी .. कह कर उसने फोन रख दिया ..

नोट- इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है.. वास्तविक जीवन से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है .. :)

रविवार, फ़रवरी 27, 2011

मेरे अनुभव

लगभग 9-10 महीने पुरानी घटना है.. मैं ट्रेन से जबलपुर से इलाहबाद जा रहा था..काम के सिलसिले में अक्सर आना जाना होता था.. सो हमेशा की तरह  उस दिन भी मैं अकेले ही यात्रा कर रहा था |
उस दिन ट्रेन में आम तौर से भीड़ कुछ ज्यादा ही थी..मुझे मेरी आरक्षित सीट तक आने में भी बड़े जनसमूह को पार करना पड़ा था |
सतना से एक नव-विवाहित जोड़ा हमारे डिब्बे में सवार हुआ |
ट्रेन में भीड़ काफी थी इस कारण उन दोनों को बैठने की जहा जो जगह मिली वो अलग-अलग बैठ गए |
वो महिला मेरे बगल में आकर बैठ गई, और उनके श्रीमान जी हमारी सामने वाली सीट पर बैठ गए | ये रात का सफ़र था इसलिए लोग उस समय सोने की तैयारी करने लगे थे | 
लगभग 11 बजे होंगे तभी हमारी बोगी में GRP (राजकीय रेलवे पुलिस) का रंगरूट सवार हुआ | देखने से ही पता चल रहा था की वो जनाब शराब के नशे में धुत होकर आये है |


उनके आते ही सबसे पहले मेरी ही  नज़रे उनसे दो-चार हो गई....कारण
मै अपनी बर्थ पर सबसे किनारे बैठा था | और दूसरी वजह की मेरे हाथ में मेरी वाकर स्टिक भी थी |
वो सीधे हमारे पास ही आ गए जैसे हम कोई सिलिब्रिटी हो.. और उन्हें हमारा आटोग्राफ लेना हो |
आते ही पुछा- अपना टिकट दिखाओ , कागज कहा है तुम्हारा  Handicapped Certificate .
इतने दुस्साहस पर मुझे गुस्सा आ गया | मैंने सख्त लहजे में कहा- जरा पीछे हट कर बात कीजिये
आप किस अधिकार से मेरा टिकट मुझसे मांग रहे है | आप  टी. सी. तो है नहीं |
और फिर भी आपको चाहिए तो बताइए क्या दू .. टिकट चाहिए टिकट दूंगा..  certificate चाहिए certificate दूंगा.. छड़ी चाहिए तो छड़ी दूंगा |मेरा व्यंग मेरे क्रोध से पूरित था.
पहले तो जंनाब को कुछ समझ नहीं आया |फिर उसने मेरे टिकट देखने का अभिनय किया | 
फ़ौरन बाद ही मेरी बगल में बैठी उस महिला पर अपनी वक्र दृष्टी डाली | अकेली जान कर उसने महिला से कुछ पूछे बिना ही उसकी तारीफ करनी शुरू कर दी |


साफ़ था की वो नशे में होने का  Advantage लेने की कोशिश में था अब तक वहां  का वातावरण असहज हो चूका था | उस महिला की परेशानी उसके चहरे पर थी | उस समय वहा बहुत से लोग थे.. पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की.. हैरानी की बात थी पर  सबसे बड़े आश्चर्य की बात की उस महिला के पति महोदय भी शांत बैठे थे |
साफ़ था की सब विवाद से बचना चाह रहे थे |ऐसा जब 10 मिनट तक चलता रहा.. तब मै जो पहले ही उसका  शिकार हो चूका था कहा- अब चलो यहाँ से तुम शोर मचा रहे हो |
वो तो जैसे तैयार ही था इसके लिए तुरंत बोला - तू क्या लगता है इसका.. हाँ बहन है |
वैसे महादेव का भक्त हूँ.. और ये मेरी माँ है |
मैंने कहा-अगर ये आपकी माँ है तो आपका बाप ये सामने बैठा है.. कह कर मैंने उनके श्रीमान जीकी तरफ इशारा किया |
उस तरफ देखे बिना वो मुझसे उलझ गया-कितने प्रतिशत विकलांग हो..हो भी या नहीं ? जानते हो  मानिकपुर में हो अभी ..अगर फेंक भी दूँ तुम्हे गाड़ी से तो पता भी  नहीं चलेगा | 
वो भी अपमे क्रोध के चरम पर था..
उसके ऐसे बोलते जाने और किसी के प्रतिरोध न करने से
मैं अजीब स्थिति में  था | मुझे बात अपमानजनक लगी मैंने बिना सोचे कहा - फेंक दो न, धमकी किसे देते हो |
प्रतिरोध से वो सकपकाया- उसे जैसे इस प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी |
वो तुरंत वहा से चलता बना |
तब अब तक जो सह-यात्री दर्शक भूमिका में थे..हरकत में आये और
मेरी वाक-पटुता की बात करने लगे | क्या जवाब दिए थे आपने बहुत सही कहा  
ऐसे लोगो को तो नौकरी से हटा देना चाहिए और उन पति महोदय को उपदेश सुनाये जाने लगे.. 
मेरा क्रोध अभी समाप्त नहीं हुआ था | मैंने सभी उपदेशियों से कहा -जाने दीजिये जब वो इनकी स्त्री का अपमान कर  रहा था तब कोई क्यूँ कुछ क्यूँ नहीं बोला ?
जब वो मुझे फेकने की बात कर रहा था तब आपमें से कोई क्यूँ नहीं बोला ?
आप सब किस के इंतज़ार में थे ?
और अब जब वो यहाँ नहीं है तब आप सब क्या साबित करना चाहते है ?
कैसे कोई इतना संवेदनहीन  हो जाता है.. और अब गाल बजाने से कोई अर्थ नहीं है |

मानिकपुर से इलाहाबाद तक के दो घंटे के रास्ते में किसी ने फिर कोई बात नहीं की |
वो पति-पत्नी मेरे साथ इलाहाबाद ही उतरे पर उसपर भी उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की |

उस दिन मेरे मन में बार-बार ये विचार आया की भारत जैसे भावना-प्रधान देश में ऐसे असंवेदनशील लोग भी है ? हममे क्या अपना कोई जस्बा बचा है |
इसलिए ही शायद नेता- अफसर मिलकर इस देश को खाए जा रहे है | अपराधी आम लोगो से ज्यदा सुरक्षित है | हमारी अपराध वृद्धी-दर संसार में पांचवे स्थान पर है | लोग देखकर भी नहीं देखते |
और हम ऐसे भारत को 2020 में महाशक्ति बनना चाहते है|
शायद हम बन भी जाए क्यूंकि हम भी अमेरिकियों -चीनियों की तरह सोचने लगे है अब -


“ BE PRECTICAL ALLWAYS & BE COOL DON’T GET EMOTIONAL IN ANY SENSES B’COZ AFTER THAT YOU’L GET ACT LIKE A FOOL “

पर क्या इस तरह हम अपनी देश की आत्मा बचा लेंगे ? क्या हम ये कर भी सकेंगे ?
और क्या ऐसा आचरण हमें शोभा देगा ?

शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2011

अनसुलझे पन्ने

स्थान- भारत के  एक महानगर का एक महगा रेस्टोरेंट 
समय और काल- दिन शनिवार, शाम के 8 :15pm ,साल 2002

मानव हमेशा की तरह आज भी मानवी के आने का इंतज़ार कर रहा है | उसके हाँथ में एक सिगरेट  है |
वो कई बार अपनी घडी की तरफ देख चूका है, जैसे उससे शिकायत कर रहा हो |
तभी तेज़ कदमो से भागती हुई एक खूबसूरत लड़की मुस्कुराते हुए उसकी तरफ  आती दिखाई देती है |ये मानवी ही है |   वो जल्दी-जल्दी सिगरेट बुझाता है, और खड़े होकर  उसके लिए सीट आफ़ॉर करता है | मानवी आकर बैठ जाती है | मानव उसके सामने बैठ जाता है |

पहला दृश्य 
मानव- जन्म दिन मुबारक हो my Love .
मानवी- सॉरी मानव, आज फिर लेट हो गई मैं, बहुत इंतज़ार करवाया ना.. ये तपन भी ना इससे अकेले कोई काम होता ही नहीं.. ऐसा लगता है वो मेरा नहीं, मैं उसकी असिस्टेंट हूँ..
कही तुमने सिगरेट तो नहीं पी अकेले में.. बोर तो नहीं हुए..
वैसे भी मैं सिर्फ 45 मिनट ही तो लेट हूँ.. (मुस्कुराते हुए)
आज है तो तुम्हारा जन्मदिन पर बधाई तुम मुझे दे रहे हो..
मैं कोई गिफ्ट नहीं लाइ जानती हूँ तुम्हे वो पसंद नहीं है|

मानव- जाने दो अब, तुम आ गई यही तो चाहिए..

"इंतज़ार का हर लम्हा सौ  साल सा गुजरा हमपर..
आते से उनके मानो पल में गुजरा सदियों का वो सफ़र "  

और जानती हो की मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा.. सच तुम जानती ही हो..तो सिगरेट के लिए मुझसे मत पूछा करो मानवी.. 

मानवी- हाँ , जानती हूँ.. नहीं पूछती.. मैं तुम्हे नहीं रोकूंगी.. पर एक सवाल का जवाब दो 

मानव- क्या ?

मानवी- तुम कभी मुझे डांटते क्यूँ नहीं ? मुझसे नाराज़ क्यूँ नहीं होते ? आज मैं फिर देर से आई तो  तुमने कुछ नहीं कहा ? क्या तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता ? 8 सालों में एक बार भी तुमने मुझपर हक नहीं जताया कभी कोई रोक टोक नहीं की.. जानते हो मैं आज आखरी बार तुमसे मिलने आई हूँ.. 5 दिन बाद मेरी शादी हो जायेगी.. मैं तुमसे नाराज़ हूँ तुमने मुझसे एक बार भी नहीं पूछा की मैं तुम्हे छोड़कर विराट से शादी क्यूँ कर रही हूँ..
हाँ पूछोगे भी क्यूँ ..तुम्हे राइटिंग करने से फुर्सत मिले तब तो कुछ पुछो मुझसे..तुम मुझसे प्यार करते भी हो या नहीं ?

मानव- (सिगरेट जलाते हुए )  प्यार क्या है जानती हो ना...

मानवी- हाँ, प्यार इमारत में नीव की तरह है जिसपर जिंदगी की बुनियाद टिकी होती है..

मानव- बस इतना ही.. !! प्यार.. मेरे लिए जीने की अकेली वजह और दुनिया में मेरे या तुम्हारे सबके होने की अकेली वजह है | सोच का फर्क है मानवी.. तुम्हारे लिए वो जिंदगी की जरुरत है.. और मेरे लिए वही जिंदगी..

मानवी- तो तुम मुझे रोकते क्यूँ नहीं पूछते क्यूँ नहीं.. क्या मैं उससे शादी कर लूं..तुम मुझे रोकोगे नहीं ?

मानव- मुझे दुःख होगा अगर तुम मुझसे पूछोगी | क्या तुम्हे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं है..
प्यार एक आज़ादी है, कोई बंधन नहीं.. इसलिए मैंने तुम्हे कभी नहीं रोका | मुझे तुमपर भरोसा खुद से ज्यादा है और रहेगा ही और प्यार मे किसी मांग का किया जाना मुझे ग़लत लगता है | 
मैंने तुम्हे बहुत प्यार किया है मानवी.. पर मैं तुम्हारे लिए कोई दीवार नहीं बना सकता..
क्या इतना  काफी नहीं की तुमने और मैंने एक दुसरे को प्यार किया.. और ज़िन्दगी भर करते रहेंगे  |
एक दुसरे को अपने प्यार से अनुग्रहित  किया..क्या ये बहुत नहीं है | क्या साथ का रहना ही सबकुछ है | जरुरी तो है प्रेम का होना और वो तुम्हारे लिए मेरे मन में बहुत है, और तुम्हारा शुक्रिया मानवी की तुमने मुझसे इतना प्यार किया |
फिर विराट तुम्हे मुझसे ज्यादा खुश रखेगा..उसका जॉब अच्छा है उसका भविष्य है, तुम उसके साथ खुश रहोगी.. ना की मेरे जैसे एक संघर्ष-शील लेखक के साथ  | फिर पता नहीं मेरा भविष्य क्या हो |

मानवी- पता नहीं मैं तुम्हे कभी समझ सकुंगी या नहीं |
मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ..मानव |

मानव- आज मेरा क्या भविष्य होगा मैं नहीं जनता | मुझे काम मिलेगा या नहीं पता नहीं| तो ऐसे में मैं तुम्हे कैसे खुश रख सकूँगा, और फिर शादी तो सामान योग्यता वालो में होनी चाहिए|
विराट वो योग्यताएं पूरी करता है.. मैं नहीं | मैं तो बस तुमसे प्यार करता हूँ.. और आज मेरे पास कुछ भी नहीं है |

मानवी- मैं यहाँ किसी और की वकालत सुनने नहीं आई हूँ तुमसे..
आखरी बार बताओ मुझसे शादी करोगे या नहीं ?
  
मानव चुप रहता है.. मानवी एक ख़त टेबल पर छोड़कर.. आखो में आंसू लिए चली जाती है |
सिगरेट का धुआ उड़ता है | ख़त पढ़ते हुए मानव वो सिगरेट बुझा देता है |

दूसरा दृश्य
स्थान- वही रेस्टोरेंट
समय और काल- दिन रविवार, शाम के 7 :30 साल 2011
मानवी आज उसी जगह बैठी है, जहा वो पिछले नौ साल से उस रोज हर बार आकर बैठती है |
उसे किसी का इंतज़ार है शायद.. बार बार वो दरवाज़े की तरफ देखती है.. तभी उसे सामने से कोई धीरे कदमो से आता दिखाई देता है.. वो चेहरा उसे याद है.. पर अब थोडा बदल गया है ..
ये मानव ही है..| मानव आकर मानवी के ठीक सामने बैठ जाता है |
दोनों काफी देर एक दुसरे को देखते रहते है जैसे कुछ खोज रहे हो माहौल में एक शांत सा शोर मचा हुआ है |
मानव - कैसी हो ?

मानवी- अच्छी हूँ ...

मानव- मुझे लगा तुम आओगी शायद.. देर तो नहीं हुई ना मुझे आने में |

मानवी- नहीं.. नौ साल लगे बस तुम्हे आने में (मुस्कुराते हुए)

मानव- तुम तो मोटी हो गई हो 

मानवी- तुम भी तो अलग दिखने लगे हो 

मानव- जन्म दिन मुबारक हो my Love .    


ये BMW तुम्हारे जन्म-दिन का तोहफा |


मानवी- तुम्हे तो तोहफे पसंद नहीं थे ना.. और वैसे भी जन्म- दिन तो तुम्हारा है |


मानव- हाँ, पर तुम तो जानती हो मैं तुम्हारे जन्म- दिन को ही अपना जन्म दिन मानता हूँ |और मेरे जन्म-दिन को तुम्हारा.. हममे कभी ये तय हुआ था, भूल गई क्या ?
और रहा तोहफे का सवाल तो जब मैं तोहफा दे नहीं सकता था तो लेता भी नहीं था... पर आज ऐसा नहीं है |  इसलिए ये तोहफा तुम रख लो |


मानवी- बहुत बड़े राइटर बन गए हो अब तुम | इतना महगा तोहफा मैं नहीं ले सकती |
चलो छोड़ो ये बताओ शादी किससे की | सिगरेट अब भी पीते हो  या ??


मानव अपनी जेब से एक ख़त निकलता है .. और कहता है
तुम्ही ने तो इस ख़त में लिखा था की अगर मैं तुमसे प्यार करता हूँ तो सिगरेट नहीं पियूँगा | मैंने 9 साल पहले ही छोड़ दी थी |
और शादी मैं नहीं कर सकता..


मानवी- क्यूँ ? ख़त में मैंने ये भी तो लिखा था की तुम शादी कर लेना.. और हो सके तो मुझे भूल जाना.. और ये भी की मैं अब सिर्फ विराट से प्यार करती हूँ | इसलिए अब हम दोनों के रिश्ते का कोई मतलब नहीं |


मानव- हाँ, लिखा था.. पर जिस तरह तुम अब चाह कर भी मुझसे वैसा प्यार नहीं कर सकती..ठीक उसी तरह तुम मुझे तुमसे प्यार करने से भी नहीं रोक सकती | और सच पूछो तो ये मेरा चुनाव भी नहीं है इसपर मेरा बस ही नहीं है ... और मैं किसी और के लिए तुम्हे नहीं छोड़ सकता


मानवी- ये क्या पागलपन है ? मत भूलो तुम एक शादीशुदा से बात कर रहे हो | जिसका एक पति है बच्चे है परिवार है | मैं अब तुमसे प्यार नहीं करती.. तुम क्यूँ ऐसा कर रहे हो तुमने सबकुछ पा लिया है जो पाने तुम यहाँ आये थे |


मानव- नहीं सबकुछ नहीं पाया .. सयोग की बात है की मुझे और विराट को एक ही लड़की पसंद आई .. इस बार मैं समझौता कर रहा हूँ अगली बार अगले जनम में वो समझौता कर लेगा - (हसते हुए )


मानवी- बात मज़ाक में मत लो ... मुझे तुम्हारे फैसले से दुःख होता है लगता है तुम्हारे साथ जो कुछ हो रहा है सबकी जिम्मेदार मैं ही हूँ मुझे ऐसा गुनाहगार मत बनाओ | अपने साथ ऐसा मत
करो |


मानव- तुम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हो कोई जिम्मेदार नहीं है | किस्मत को शायद यही मंजूर हो


मानवी- तुम किस्मत पर अपनी बात नहीं टाल सकते


आज तुम्हे तय करना ही होगा....


मानव चुप हो जाता है पर्दा गिर जाता है |


सूत्रधार आकर सवाल करता है..........



  •  क्या प्रेम किसी बंधन का मोहताज़ है ?


  • क्या मानव का फैसला सही है ?


  • क्या मानवी की शादी हो जाने के बाद भी अपने प्रेम का प्रदर्शन करना सही है  ?


  • क्या मानवी का पक्ष ठीक है ? 

  •  क्या ये मानव की जिद है या फिर उसका  प्रेम ही है ?

    आप क्या सोचते है ?


शनिवार, नवंबर 06, 2010

दोस्तों के नाम एक पत्र

गौरव... दोस्त मुझे माफ़ कर देना.. मुझे माफ़ कर देना मेरे यार... आज मैं तुमसे दूर हो गया हूँ | 
कल दीपावली थी.. मैं, ना तुमसे मिलने आया, ना बात की..एक दीपावली का संदेस तक नहीं भेजा तुम्हे|
मैं तुमसे मिलना चाहता था, बात करना चाहता था, बहुत कुछ था कहने के लिए... और उससे भी ज्यादा सुनने के लिए...
मैं तुम्हे सुनना चाहता हूँ... पर मैं तुम्हारे पास नहीं आ सका.. एक फोन भी मैं तुम्हे नहीं कर सका |
जानते हो क्यूँ ... चाह कर भी तुमसे बात नहीं की... कर सकता था पर एक भी मैसेज नहीं किया, पता है क्यूँ ??
क्यूंकि मैं.. मैं मनीष शुक्ला- " The great Friend of All time  जो मर भी जाये तो दोस्त और दोस्ती को नहीं 
छोड़ेगा" कहने वाला मैं.. अपने अहंकार से हार गया यार |  मेरा अहम् मेरे और तुम सब के बीच आ गया.. मेरे
' तथाकथित स्वभिमान ' ने मुझे कुछ नहीं करने दिया | मैंने कल दीपावली के पूरे दिन.. तुम्हे,
श्वेता जी, आनंद जी और 'उन्हें' भी बहुत बहुत याद किया... कल सारे दिन बहुत याद आये तुम सब लोग |
इसी चक्कर में कल मैं सारे दिन उदास रहा.. कही मन नहीं लगा.. तुम सब के बगैर जैसे दीपावली मेरे लिए थी ही नहीं |
जानते हो तुम्हारा मैसेज कल मेरे पास शाम 4:26 को आया.. और सच कहूँ
तो इसका इंतज़ार मैं सुबह से कर रहा था..;)
जब तुम्हारा नाम mobile screen पर पढ़ा तो इतना अच्छा लगा के बस बता नहीं सकता |
आखिर जिस नाम को मैं रोज अपने  मोबाइल स्क्रीन पर देखने का आदी था.. उसे कल
मैं पूरे 33 दिन और 21 घंटे के बाद अपने सेल  परदेख पाया.. ;) अच्छा तो लगेगा ही |
उसी समय मैंने सोचा " साले को अभी फुर्सत मिली है लड़कियां पटाने से..घर गया होगा बस्ती.. 
सब कुछ कर चूका तो अब मेरी याद आई".. गया था ना यार तू बस्ती.. की यही था ?? 
जब तेरा संदेस मिला तो मैंने सोचा reply कर दूं.. फिर सोचा मेरे उस "वचन" का क्या होगा .. जब मैंने ही 
कहा था - कभी बात ना करूँ तो बुरा मत मानना | तो मैं खुद से कैसे करूँ |
मेरे अन्दर वही अहंकार जाग उठता है " जब तक खुद को रोक सकूँगा रोकूंगा " यही पकड़ के बैठ जाता हूँ|
मैंने कल ही जाना की कभी- कभी अपने पर काबू पाना कितना मुश्किल होता है.. 


मैंने तुमसे महीनो से बात नहीं की कोई संपर्क नही रखा.. यूं ही बिना कारण बताये.. मैं अचानक
एक दिन तुमसे अलग हो गया.. और उसमे तुम्हारी कोई भी ग़लती नहीं थी... तुमने तो हमेशा
मेरा साथ दिया.. तब भी जब कोई नहीं दे पाया | और जब इसपर भी इतने दिनों के
बाद तुम्हारा मैसेज आया तो मैंने उसका भी कोई जवाब नहीं दिया | मैं कितना बुरा हूँ ना यार |
तुम भी जब सोचते होगे मुझे गलियां ही देते होगे पता है.. पूरा पागल है साला..पूरा Third gender है..
पता नहीं काहे फ़ोन क्यूँ नहीं करता है|
पता नहीं कहा है ? क्या कर रहा है ? कहा मर गया है साला ?? यही सोचते हो ना !! पता है.. पता है..
गौरव महान क्या सोचते है मेरे बारे में... ;)


यार जनता नहीं था इतना मुश्किल होगा.. सोच से ज्यादा तकलीफ होती है.. 
अंदाजा तो था की तकलीफ होगी..पर  दूर जाने पर इतनी पीड़ा होगी नहीं जनता था 3 अक्टूबर के बाद
से कोई दिन ऐसा नहीं गया है जब तुम सब भी मुझे याद ना आये हो| एक उनकी याद तो हमेशा ही
रहती है... पर तुम भी उसमे गुसपैठ कर लोगे, इसका अंदाज़ा नहीं था|
अब तो मैं दोस्ती करने से घबराता हूँ.. पहले दोस्ती होती है  अच्छा लगता है 
फिर जब उन्ही दोस्तों से दूर होना पड़े तो ? बाप रे.. बाप |
इसलिए मैंने किसी को कल दीपावली wish नहीं की |
डर सा लगा रहा दोस्ती शुरू ना हो जाए, और फिर मन भी तो नहीं किया |
देखो.. मैं दूर जाके दुखी भी हूँ.. और पास आकर चाहते हुए भी तुम्हे मनाऊंगा नहीं... 
पता नहीं कब तक ऐसा चलेगा !!
जानते हो,  तुम सब से अलग जाकर मैं खुद को सजा दे रहा हूँ.. जब मैं खुद से पूछता हूँ
मैं तुम सब से अलग क्यूँ रहूँ ? किसलिए ? तो जवाब आता है खुद को परेशान करो.. दुखी करो..
सजा दो खुद को | क्यूंकि मनीष तुम्हे दोस्ती निभानी नहीं आई.. अब इसका मज़ा भुगतो |
तुम इस लायक नहीं हो की किसी से दोस्ती करो..

कभी- कभी लगता है के सब से जाके माफ़ी मांग लूं..पर पता भी तो हो मैंने किया क्या है ?
ये हालत ही थे की आज हम अलग हो गए है... या शायद ऐसा लगता है |   
जो हालत है मुझे नहीं लगता की मैं तुम सब को कभी भी भूल पाऊंगा. .मुसीबत की तरह
हमेशा याद रहोगे तुम सब...  ;)
तब तक रुका रहूँगा... जब तक मेरा वक्त मुझे रोके रखेगा.. तुम लोगो के पास आने से | और
जिस दिन मैं खुद से हार गया तो उस दिन पाताल से भी खोज निकालूँगा तुम सब को...
याद रखना तुम सब मेरे दोस्त थे और हमेशा रहोगे |
पर एक बात बताओ तब तक मुझे भूल तो नहीं जाओगे ?? 
क्या मेरा इंतज़ार करोगे कभी ? मुझे याद रखोगे ?
इतना तो याद रहेगा ही ना की एक लड़का था जो जरुरत से ज्यदा सेंटी और टची टाइप था.. ;)


गौरव सिंह हम आपको भूल नहीं पायेगे यार... और किसी भी दोस्त को नहीं भूल सकूंगा यार...
पर अब किसी से दोस्ती भी नहीं करेंगे यार... अलग होना पड़े तो बड़ी मार लगती है दिल में...

गुरुवार, अक्तूबर 21, 2010

सौ चांद भी चमकेंगे

सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी
उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
अब क्या तरकीब -ए-मुलाक़ात बनेगी
ये हम से न होगा कि अब किसी और को चाहें
ऐ इश्क़! हमारी अब न तेरे साथ बनेगी
हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी
ये क्या के बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी 
____________________________  जाँ निसार अख्तर