बुधवार, अक्तूबर 20, 2010

प्रेम रोग या लोवेरिया -एक वृस्तित विवेचन

आइये आज हम बात करते है एक असामान्य रोग की | इकिस्वी सदी के इस वैज्ञानिक युग में जहा कोई भी कार्य बिना स्वार्थ- कारण के नही किया जा रहा है वही प्रेम रोग जैसे रोग से लोग कष्ट में है क्यूँ की इस रोग से पीड़ित रोगी अकारण ही लोगो को बस देता ही रहता है बदले में उनसे कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा नही रखता। जिस कारण उसका परिहास तक हो जाता है  आइये जानते है कुछ  इसके सम्बन्ध में


रोग का नाम - प्रेम रोग, लव ,प्यार या कुछ भी, अलग- अलग समाजो में इसका अलग-अलग नाम है
यह मानव -जाति में ही पाया जाता है पर मतान्तर से यह पशु -पक्षियों में भी देखा गया है


इतिहास - इस रोग विषय में पूरे प्रमाण तो नही मिलते किंतु ऐसा अनुमान है की 
सृष्टीके आरम्भ से ही इस रोग की सृष्टी थी
विश्व की सर्वप्रचिन सिन्धु-सभ्यता में इसके प्रमाण मिले है  रामायण -महाभारत काल में भी
इसके रोगियों ने बड़ा उत्पात मचाया था। संसार के हर संस्कृति -सभ्यता में इसके प्रमाण है जैसे-
रोमियोजूलियट (रोम), हीर-राँझा (पंजाब,भारतऔर लैला -मजनू (अरब की भूमि ) इन सभी को
आधुनिक इतिहासकार और समाज शास्त्री इस रोग का प्रथम रोगी और खोजकर्ता स्वीकार करते है 
लैला -मजनू तो इस महारोग का पर्याय ही बन गए है| 

रोग का प्रकार -यह एक मानसिक रोग है | जो कई बार अनुवांशिक भी हो सकता है | 
अरस्तु, प्लेटो और जिब्रान जैसे दार्शनिको ने इसे आत्मा से (soul ) जोड़ा है..    
(नोट- आधुनिक चिकित्सा -विज्ञान आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है )


मानसिक रोगों में इसकी कटेगरी-  A +

रोग की संभावित आयु - 16 से 35 वर्ष असमान्य मामलो में आयु  सीमा नही भी होती


इस रोग के होने का कारण - ठीक- ठीक तो इसके कोई कारण ज्ञात नहीं होते, किन्तु अनुमान है की दाहिने मस्तिस्क  के ऊपर की तरफ ,जहा से मनुष्य की सारी भावनात्मक गतिविधियाँ संचालित होती है वही पर किसी अनियमितता के कारण किसी कीमियागिरी के चलते एक उत्प्रेरण उत्पन्न होता है जिस कारण यह रोग हो जाता है |
किसी विपरीत लिंग के व्यक्ति के संपर्क में आते ही (पश्चिमी देशो में सम लिंगी भी  हो सकता है ) रोगी का संतुलन बिगड़ जाता है और वो असमान्य प्रतिक्रिया और व्यवहार करने लगता है|
ख़ास बात ये है की व्यक्ति का चुनाव रोगी द्वारा पूर्व- नियोजित नहीं होता और कई बार यह यकायक ही होता है  

नोट - यह एक संक्रामक रोग हैरोगी के संपर्क में आने से इसका संचरण हो सकता है । बचाव के लिए रोगी से दूर रहे 
और अगर समपर्क में रहना ही पड़े तो अपने कानो को बंद रखे अन्यथा  रोगी के विचार आपको भी संकमित कर सकते है|


~ व्यक्ति को आगे से लक्ष्य (object) कहा जायेगा|


लक्षण-
असल में यह एक रोग ही नही अपितु रोगों का समूह ही है यथा -
(1) उन्माद 
(2) अवसाद 
(3) अनिद्रा
(4) अनोरेक्सिया या आहार की अनियमितता 
(5) obsessive-compulsive disorder या जुनूनी विकार  
(6) उच्च रक्तचाप अथवा निम्न भी- मूलतया परिस्थितियों पर निर्भर 

सामान्य प्रक्रिया - इस रोग में रोगी अजीब सा व्यवहार करना शुरू कर देता है, अकारण ही खुश रहना और अकारण ही
दुखी हो जाना, किसी खास लक्ष्य के ही विषय में चिंतन करते रहना | इस रोग में रोगी अपने जीवन का अधार उस लक्ष्य
को बना लेता है जिसके प्रेम में वो पड़ गया होता है | रोगी उसी के सुख दुःख की चिंता करता रहता है अपना कोई विचार
नहीं करता| उसी में उसे असीम आनंद की अनुभूति होती है

उपचार एवं बचाव ~ अभी तक यह एक लाइलाज रोग है, किन्तु यदि शुरूआती स्तरों पर ही इसका पाता चल जाए तो इसका इलाज़ किया जा सकता है | लक्षणों का पाता चलते ही  रोगी को तत्काल लक्ष्य से दूर हो जाना चाहिए
उससे कतई बात या सपर्क ना रखे और हो सके तो उस जगह से अपना तबादला करवा ले |

पुरुष अपनी जेबों में राखी ले कर चले | यदि लक्षण ठीक ना लगे तो तुरंत राखी बधवा ले |
सगीत ना सुने , मीठा ना खाएं और किसी से ज्यादा बात ना करे
स्त्रीयां बचाव के लिए लक्ष्य से दूरी बनायें , लक्ष्य की तरफ कभी भूल कर भी ना देखें
लक्ष्य के सामने मौन का ही प्रयोग करे |


और यदि यह रोग गहराई से लग चूका हो तो संभवतः इसका इलाज़ समय ही कर सकेगा |
कई मामलो में समय ने रोग को कम कर दिया है लेकिन बहुसंख्यक मामलों में समय का कोई असर नहीं
पाया जाता | असल में लक्ष्य बदल जाता है रोग वैसा ही बना रहता है

इन तमाम बातों और को पढ़ कर अगर कोई एक आपको बार- बार याद आ रहा है
तो  फिर भी आप इस रोग में पड़ चुके है........ इसलिए

मजें करे
क्यूंकि आप किस्मत वाले हैं ...

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