सोमवार, जुलाई 27, 2009

तुझे क्या देखूं

फ़ुरसत नही हमें ख़ुद ही से..
एय अलम तुझे क्या देखूं ..

जो देख लिया इक बार उसे..
ये एहले -जहाँ क्या देखूं ..

समंदर एक बूँद में देख लिया है..
कतरा भर पानी का मश्क क्या देखूं..

आरजुए ले आई हैं इतनी दूर हमें ..
मुमकिन नहीं के अब मुड़कर देखूं ..

जी जो अब तक भरा ही नही "काफिर" उनसे..
गुंजाइश कहाँ के किसी और को देखूं ...

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