रविवार, जुलाई 12, 2009

इतना मिला जो तेरा साथ

इतना मिला जो तेरा साथ बहुत है..
अब ये जो फासला है दरमिया...बहुत है..

गुजारे है हमने जिंदगी के लम्हे तमाम...
अब गुजर के लिए तेरी यादे बहुत है..

कुछ भी न बचा तुम्हे बताने को...लेकिन ...
कुछ राज़ थे.. जिन्हें सुनने को तू ही वाहेद है..

तुम्हे भूले अगर तो ख़ुद का पता पूछेंगे ..पर..
दिल आज तुम्हे भूलने का तलबगार बहुत है

ज़िन्दगी पे इख्तियार हमारा नही..
वरना आज मन मरने को बेकरार बहुत है..

गिला उनकी रुसवाई का हमें नही है.. मगर
अपनी ना-समझी पर हम आज उदास बहुत है..

ना समझे है ना समझेंगे वो मेरी बात को..
"काफिर" आज भी उनमे उनका बचपना बहुत है..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें