मंगलवार, जुलाई 14, 2009

जो तेरा सजदा न करू तो क्या करू

जो तेरा सजदा न करू तो क्या करू ..
तुझपर भी एतबार न करू तो क्या करू ..

आदमी को आदत है सर को झुकाने की ..
झुकने  को तेरा दर न मिले तो क्या करू ..

देखा कहा किसी ने तुझे  रवा होते..
और तेरी कैफियत से इनकार क्या करू..

मंजिल मिले न मिले सही..
मैं तो तेरी ही कश्ती का सवार क्या करू ..

काफिला -कारवां रास्ते कई है..
पर तेरी राह न मिले तो क्या करू ..

तुझे ढूंडा है तबसे मैं हूँ जबसे ..
रवायत सी हो गई है क्या करू..

गया जो दम तो गए हैं "काफिर" भी ..
जो था तुझसे ही दम तो क्या करूँ ..

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