शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2011

अनसुलझे पन्ने

स्थान- भारत के  एक महानगर का एक महगा रेस्टोरेंट 
समय और काल- दिन शनिवार, शाम के 8 :15pm ,साल 2002

मानव हमेशा की तरह आज भी मानवी के आने का इंतज़ार कर रहा है | उसके हाँथ में एक सिगरेट  है |
वो कई बार अपनी घडी की तरफ देख चूका है, जैसे उससे शिकायत कर रहा हो |
तभी तेज़ कदमो से भागती हुई एक खूबसूरत लड़की मुस्कुराते हुए उसकी तरफ  आती दिखाई देती है |ये मानवी ही है |   वो जल्दी-जल्दी सिगरेट बुझाता है, और खड़े होकर  उसके लिए सीट आफ़ॉर करता है | मानवी आकर बैठ जाती है | मानव उसके सामने बैठ जाता है |

पहला दृश्य 
मानव- जन्म दिन मुबारक हो my Love .
मानवी- सॉरी मानव, आज फिर लेट हो गई मैं, बहुत इंतज़ार करवाया ना.. ये तपन भी ना इससे अकेले कोई काम होता ही नहीं.. ऐसा लगता है वो मेरा नहीं, मैं उसकी असिस्टेंट हूँ..
कही तुमने सिगरेट तो नहीं पी अकेले में.. बोर तो नहीं हुए..
वैसे भी मैं सिर्फ 45 मिनट ही तो लेट हूँ.. (मुस्कुराते हुए)
आज है तो तुम्हारा जन्मदिन पर बधाई तुम मुझे दे रहे हो..
मैं कोई गिफ्ट नहीं लाइ जानती हूँ तुम्हे वो पसंद नहीं है|

मानव- जाने दो अब, तुम आ गई यही तो चाहिए..

"इंतज़ार का हर लम्हा सौ  साल सा गुजरा हमपर..
आते से उनके मानो पल में गुजरा सदियों का वो सफ़र "  

और जानती हो की मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा.. सच तुम जानती ही हो..तो सिगरेट के लिए मुझसे मत पूछा करो मानवी.. 

मानवी- हाँ , जानती हूँ.. नहीं पूछती.. मैं तुम्हे नहीं रोकूंगी.. पर एक सवाल का जवाब दो 

मानव- क्या ?

मानवी- तुम कभी मुझे डांटते क्यूँ नहीं ? मुझसे नाराज़ क्यूँ नहीं होते ? आज मैं फिर देर से आई तो  तुमने कुछ नहीं कहा ? क्या तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता ? 8 सालों में एक बार भी तुमने मुझपर हक नहीं जताया कभी कोई रोक टोक नहीं की.. जानते हो मैं आज आखरी बार तुमसे मिलने आई हूँ.. 5 दिन बाद मेरी शादी हो जायेगी.. मैं तुमसे नाराज़ हूँ तुमने मुझसे एक बार भी नहीं पूछा की मैं तुम्हे छोड़कर विराट से शादी क्यूँ कर रही हूँ..
हाँ पूछोगे भी क्यूँ ..तुम्हे राइटिंग करने से फुर्सत मिले तब तो कुछ पुछो मुझसे..तुम मुझसे प्यार करते भी हो या नहीं ?

मानव- (सिगरेट जलाते हुए )  प्यार क्या है जानती हो ना...

मानवी- हाँ, प्यार इमारत में नीव की तरह है जिसपर जिंदगी की बुनियाद टिकी होती है..

मानव- बस इतना ही.. !! प्यार.. मेरे लिए जीने की अकेली वजह और दुनिया में मेरे या तुम्हारे सबके होने की अकेली वजह है | सोच का फर्क है मानवी.. तुम्हारे लिए वो जिंदगी की जरुरत है.. और मेरे लिए वही जिंदगी..

मानवी- तो तुम मुझे रोकते क्यूँ नहीं पूछते क्यूँ नहीं.. क्या मैं उससे शादी कर लूं..तुम मुझे रोकोगे नहीं ?

मानव- मुझे दुःख होगा अगर तुम मुझसे पूछोगी | क्या तुम्हे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं है..
प्यार एक आज़ादी है, कोई बंधन नहीं.. इसलिए मैंने तुम्हे कभी नहीं रोका | मुझे तुमपर भरोसा खुद से ज्यादा है और रहेगा ही और प्यार मे किसी मांग का किया जाना मुझे ग़लत लगता है | 
मैंने तुम्हे बहुत प्यार किया है मानवी.. पर मैं तुम्हारे लिए कोई दीवार नहीं बना सकता..
क्या इतना  काफी नहीं की तुमने और मैंने एक दुसरे को प्यार किया.. और ज़िन्दगी भर करते रहेंगे  |
एक दुसरे को अपने प्यार से अनुग्रहित  किया..क्या ये बहुत नहीं है | क्या साथ का रहना ही सबकुछ है | जरुरी तो है प्रेम का होना और वो तुम्हारे लिए मेरे मन में बहुत है, और तुम्हारा शुक्रिया मानवी की तुमने मुझसे इतना प्यार किया |
फिर विराट तुम्हे मुझसे ज्यादा खुश रखेगा..उसका जॉब अच्छा है उसका भविष्य है, तुम उसके साथ खुश रहोगी.. ना की मेरे जैसे एक संघर्ष-शील लेखक के साथ  | फिर पता नहीं मेरा भविष्य क्या हो |

मानवी- पता नहीं मैं तुम्हे कभी समझ सकुंगी या नहीं |
मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ..मानव |

मानव- आज मेरा क्या भविष्य होगा मैं नहीं जनता | मुझे काम मिलेगा या नहीं पता नहीं| तो ऐसे में मैं तुम्हे कैसे खुश रख सकूँगा, और फिर शादी तो सामान योग्यता वालो में होनी चाहिए|
विराट वो योग्यताएं पूरी करता है.. मैं नहीं | मैं तो बस तुमसे प्यार करता हूँ.. और आज मेरे पास कुछ भी नहीं है |

मानवी- मैं यहाँ किसी और की वकालत सुनने नहीं आई हूँ तुमसे..
आखरी बार बताओ मुझसे शादी करोगे या नहीं ?
  
मानव चुप रहता है.. मानवी एक ख़त टेबल पर छोड़कर.. आखो में आंसू लिए चली जाती है |
सिगरेट का धुआ उड़ता है | ख़त पढ़ते हुए मानव वो सिगरेट बुझा देता है |

दूसरा दृश्य
स्थान- वही रेस्टोरेंट
समय और काल- दिन रविवार, शाम के 7 :30 साल 2011
मानवी आज उसी जगह बैठी है, जहा वो पिछले नौ साल से उस रोज हर बार आकर बैठती है |
उसे किसी का इंतज़ार है शायद.. बार बार वो दरवाज़े की तरफ देखती है.. तभी उसे सामने से कोई धीरे कदमो से आता दिखाई देता है.. वो चेहरा उसे याद है.. पर अब थोडा बदल गया है ..
ये मानव ही है..| मानव आकर मानवी के ठीक सामने बैठ जाता है |
दोनों काफी देर एक दुसरे को देखते रहते है जैसे कुछ खोज रहे हो माहौल में एक शांत सा शोर मचा हुआ है |
मानव - कैसी हो ?

मानवी- अच्छी हूँ ...

मानव- मुझे लगा तुम आओगी शायद.. देर तो नहीं हुई ना मुझे आने में |

मानवी- नहीं.. नौ साल लगे बस तुम्हे आने में (मुस्कुराते हुए)

मानव- तुम तो मोटी हो गई हो 

मानवी- तुम भी तो अलग दिखने लगे हो 

मानव- जन्म दिन मुबारक हो my Love .    


ये BMW तुम्हारे जन्म-दिन का तोहफा |


मानवी- तुम्हे तो तोहफे पसंद नहीं थे ना.. और वैसे भी जन्म- दिन तो तुम्हारा है |


मानव- हाँ, पर तुम तो जानती हो मैं तुम्हारे जन्म- दिन को ही अपना जन्म दिन मानता हूँ |और मेरे जन्म-दिन को तुम्हारा.. हममे कभी ये तय हुआ था, भूल गई क्या ?
और रहा तोहफे का सवाल तो जब मैं तोहफा दे नहीं सकता था तो लेता भी नहीं था... पर आज ऐसा नहीं है |  इसलिए ये तोहफा तुम रख लो |


मानवी- बहुत बड़े राइटर बन गए हो अब तुम | इतना महगा तोहफा मैं नहीं ले सकती |
चलो छोड़ो ये बताओ शादी किससे की | सिगरेट अब भी पीते हो  या ??


मानव अपनी जेब से एक ख़त निकलता है .. और कहता है
तुम्ही ने तो इस ख़त में लिखा था की अगर मैं तुमसे प्यार करता हूँ तो सिगरेट नहीं पियूँगा | मैंने 9 साल पहले ही छोड़ दी थी |
और शादी मैं नहीं कर सकता..


मानवी- क्यूँ ? ख़त में मैंने ये भी तो लिखा था की तुम शादी कर लेना.. और हो सके तो मुझे भूल जाना.. और ये भी की मैं अब सिर्फ विराट से प्यार करती हूँ | इसलिए अब हम दोनों के रिश्ते का कोई मतलब नहीं |


मानव- हाँ, लिखा था.. पर जिस तरह तुम अब चाह कर भी मुझसे वैसा प्यार नहीं कर सकती..ठीक उसी तरह तुम मुझे तुमसे प्यार करने से भी नहीं रोक सकती | और सच पूछो तो ये मेरा चुनाव भी नहीं है इसपर मेरा बस ही नहीं है ... और मैं किसी और के लिए तुम्हे नहीं छोड़ सकता


मानवी- ये क्या पागलपन है ? मत भूलो तुम एक शादीशुदा से बात कर रहे हो | जिसका एक पति है बच्चे है परिवार है | मैं अब तुमसे प्यार नहीं करती.. तुम क्यूँ ऐसा कर रहे हो तुमने सबकुछ पा लिया है जो पाने तुम यहाँ आये थे |


मानव- नहीं सबकुछ नहीं पाया .. सयोग की बात है की मुझे और विराट को एक ही लड़की पसंद आई .. इस बार मैं समझौता कर रहा हूँ अगली बार अगले जनम में वो समझौता कर लेगा - (हसते हुए )


मानवी- बात मज़ाक में मत लो ... मुझे तुम्हारे फैसले से दुःख होता है लगता है तुम्हारे साथ जो कुछ हो रहा है सबकी जिम्मेदार मैं ही हूँ मुझे ऐसा गुनाहगार मत बनाओ | अपने साथ ऐसा मत
करो |


मानव- तुम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हो कोई जिम्मेदार नहीं है | किस्मत को शायद यही मंजूर हो


मानवी- तुम किस्मत पर अपनी बात नहीं टाल सकते


आज तुम्हे तय करना ही होगा....


मानव चुप हो जाता है पर्दा गिर जाता है |


सूत्रधार आकर सवाल करता है..........



  •  क्या प्रेम किसी बंधन का मोहताज़ है ?


  • क्या मानव का फैसला सही है ?


  • क्या मानवी की शादी हो जाने के बाद भी अपने प्रेम का प्रदर्शन करना सही है  ?


  • क्या मानवी का पक्ष ठीक है ? 

  •  क्या ये मानव की जिद है या फिर उसका  प्रेम ही है ?

    आप क्या सोचते है ?


1 टिप्पणी:

  1. मानव हर तरीके के सही है । प्रेम किसी से और विवाह किसी और से करना हर तह से अनुचित है । मानव का प्रेम एक आदर्श प्रेम है ।

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