मनीषा आज खिड़की से उस पूरे चाँद को देख कर बहुत खुश है... उसे याद नहीं की ऐसा उसने इससे पहले कब देखा था.. उसने ओस की झीनी परत से झाकते चाँद को ऐसे देखा जैसे कोई बच्चा
पहली बार अपनी माँ को देखता है | बहुत दिन बीत गए जब उसने सुबह के उगते सूरज और रात के
पूरे चाँद को नजर भर देखा हो | वो तो जैसे इन सब से भागने लगी है |
आज ठण्ड है.. पर वो ठण्ड उसे गर्माहट का एहसास दे रही है | अपनी व्हील-चेयर पर बैठे अपनी ही बांहों में खुद को समेटे, आँखे बंद किये हुए अपने अतीत में खो गई वो..
उसे याद है जब वो अपने सबसे सुन्दर रूप में दिखना चाह रही थी, उस मुलाकात के लिए उसने महीनो खुद को तैयार किया था..परियों सा रूप बना कर वो अपने सौंदर्य पर आज खुद रीझी जाती थी | शायद उसे पता था की आज विनय से वो आखरी बार मिलेगी |
कितना सोच कर आई थी की आज विनय से सब वो कह देगी, जो तीन सालों में वो कह नहीं सकी
उसे बस इतना ही तो कहना था...
बस इतना ही की वो उसके बिना खुद की कल्पना नहीं करती |
बस इतना ही की वो उसकी बेमतलब सी जिंदगी में जीने की एक वजह बन गया है |
वो उसके लिए इतना ख़ास हो चूका है की जिंदगी भर बिना किसी मांग के वो उसे प्यार करती जायेगी |
वो बताना चाहती थी की वो ये सब उससे कहने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाई |
उसे हमेशा लगता की एक अपाहिज लड़की जो विनय के लिए एक दोस्त से ज्यादा कुछ भी नहीं है |
उसे वो कैसे कहेगी की उसने पता भी नहीं के न जाने कब पता नहीं कैसे उस लड़के को मन ही मन में अपना सब कुछ मान लिया था उसने....
और वो ये भी तो जानती है की उसका ये प्यार एक-तरफ़ा है.. उसे हर बार एक अनजाना डर घेर लेता था के कही ये सब जानकर वो उससे दूर तो नहीं हो जायेगा | अभी जो कभी-कभी का साथ है सच जानने के बाद ये भी खत्म हो गया तो ? वो उस आवाज को सुने बिना कैसे जियेगी ? अगर सच जानकर वो दूर हो गया तो ?
और फिर ऐसा भी तो नहीं है की वो मनीषा को जानता नहीं है.. विनय सब जानता है शायद !!!
लड़के इतने अनाड़ी तो नहीं होते लेकिन पता नहीं क्यूँ वो अनजान बने रहना चाहता था |
और अब जब विनय की शादी हो चुकी है तब आज वो उससे अपना सच बताने की हिम्मत जुटा सकी है..अब उसे मालूम है की वो विनय को खो चुकी है, जिसे उसने कभी पाया ही नहीं उसके खो जाने के डर ने उसे आज सच बोलने पर मजबूर कर दिया... हाँ ये सही नहीं है लेकिन बस बताने में तो कोई हर्ज़ नहीं , न बता कर वो विनय से धोखा ही तो कर रही है
बस उसे बता कर वो आज उसकी जिंदगी से चली जाएगी |
बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको इसके लिए आज तैयार किया है
मनीषा ने कई बार कोशिश भी की उसे बताने की पर हर बार वो विनय के दूर चले जाने के ख्याल से नहीं बोल सकी...
आखिर विनय ही तो मनीषा के लिए सबकुछ था | विनय से प्यार करना ही उसने अपने जीने का कारण बना लिया था
आज मनीषा का इरादा पक्का है.. वो जानती है आज नहीं कह सकी तो फिर उससे
वो कभी नहीं कह सकेगी | विनय अब वो शहर छोड़ कर जा रहा था |
हर बार की तरह इस बार भी विनय से मिलते ही मनीषा सब कुछ भूल गई है.. उसे अब याद नहीं की उसे क्या कहना था आज फिर वो विनय के पाँव देखती रह गई | पागल लड़की, उसे विनय के पाँव इस जहां में सबसे सुन्दर लगते |
विनय- हाँ अच्छा सोचा है आने वाले को कौन रोक सकता है तुम भी आ जाओ.. पर वहा Bachelors को कमरा Rent पर आसानी से नहीं मिलता |
मनीषा- मैंने शादी कर ली है... और बच्चे मेरे होंगे नहीं.. और दुबारा शादी मैं नहीं करुँगी |
ओ हाँ.. वो तस्वीर से शादी जिसे तुमने किसी को दिखाया नहीं था |
जिसे तुमने मानसिक विवाह का नाम दिया था |
हाँ... सारे रिश्ते मन के ही तो है.. मन अगर न स्वीकार करे तो क्या है..
हाँ तुम से कौन जीतेगा मेरी अम्मा ...
विनय याद है उस लड़के का क्या नाम है ?
हाँ.. बताया तो था.. विक्रम था शायद..!!
हाँ.. पर सच ये है ऐसे किसी लड़के को मैं नहीं जानती... उस लड़के का नाम विनय है...विनय श्रीवास्तव | वो आप है..
मनीषा अपना सच कह चुकी थी.. जैसे सांस रुक गई थी उसकी..सांस ऐसे फूल गई जैसे मील भर
भाग कर किसी बच्चे की फूल जाए..
वो ख़ामोशी विनय की आवाज़ से टूटी- मनीषा मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी.. तुम cheep हो..चरित्रहीन हो..तुमने मुझे धोखा दिया है...
विनय के मुह से इतना सुनते ही उसे ऐसा लगा अब वो क्या करे .. कहा जाए.. रोना आया पर खुद पर काबू कर लिया उसने जैसे हमेशा वो करती आई थी ..
वो बस इतना बोल सकी- मैं चरित्रहीन नहीं हूँ...
***************
फोन की घंटी ने उसकी तन्द्रा को तोडा था वो अपने अतीत से बाहर आई... दूसरी तरफ मां की आवाज़ थी..
कैसी है मीनू.. मुंबई से कब आओगी ..याद है न परसों लड़के वाले आयेंगे..
अम्मा , मैं कह चुकी हूँ .. मैं दुबारा शादी नहीं करुँगी .. कह कर उसने फोन रख दिया ..
नोट- इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है.. वास्तविक जीवन से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है .. :)
कितना सोच कर आई थी की आज विनय से सब वो कह देगी, जो तीन सालों में वो कह नहीं सकी
उसे बस इतना ही तो कहना था...
बस इतना ही की वो उसके बिना खुद की कल्पना नहीं करती |
बस इतना ही की वो उसकी बेमतलब सी जिंदगी में जीने की एक वजह बन गया है |
वो उसके लिए इतना ख़ास हो चूका है की जिंदगी भर बिना किसी मांग के वो उसे प्यार करती जायेगी |
वो बताना चाहती थी की वो ये सब उससे कहने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाई |
उसे हमेशा लगता की एक अपाहिज लड़की जो विनय के लिए एक दोस्त से ज्यादा कुछ भी नहीं है |
उसे वो कैसे कहेगी की उसने पता भी नहीं के न जाने कब पता नहीं कैसे उस लड़के को मन ही मन में अपना सब कुछ मान लिया था उसने....
और वो ये भी तो जानती है की उसका ये प्यार एक-तरफ़ा है.. उसे हर बार एक अनजाना डर घेर लेता था के कही ये सब जानकर वो उससे दूर तो नहीं हो जायेगा | अभी जो कभी-कभी का साथ है सच जानने के बाद ये भी खत्म हो गया तो ? वो उस आवाज को सुने बिना कैसे जियेगी ? अगर सच जानकर वो दूर हो गया तो ?
और फिर ऐसा भी तो नहीं है की वो मनीषा को जानता नहीं है.. विनय सब जानता है शायद !!!
लड़के इतने अनाड़ी तो नहीं होते लेकिन पता नहीं क्यूँ वो अनजान बने रहना चाहता था |
और अब जब विनय की शादी हो चुकी है तब आज वो उससे अपना सच बताने की हिम्मत जुटा सकी है..अब उसे मालूम है की वो विनय को खो चुकी है, जिसे उसने कभी पाया ही नहीं उसके खो जाने के डर ने उसे आज सच बोलने पर मजबूर कर दिया... हाँ ये सही नहीं है लेकिन बस बताने में तो कोई हर्ज़ नहीं , न बता कर वो विनय से धोखा ही तो कर रही है
बस उसे बता कर वो आज उसकी जिंदगी से चली जाएगी |
बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको इसके लिए आज तैयार किया है
मनीषा ने कई बार कोशिश भी की उसे बताने की पर हर बार वो विनय के दूर चले जाने के ख्याल से नहीं बोल सकी...
आखिर विनय ही तो मनीषा के लिए सबकुछ था | विनय से प्यार करना ही उसने अपने जीने का कारण बना लिया था
आज मनीषा का इरादा पक्का है.. वो जानती है आज नहीं कह सकी तो फिर उससे
वो कभी नहीं कह सकेगी | विनय अब वो शहर छोड़ कर जा रहा था |
हर बार की तरह इस बार भी विनय से मिलते ही मनीषा सब कुछ भूल गई है.. उसे अब याद नहीं की उसे क्या कहना था आज फिर वो विनय के पाँव देखती रह गई | पागल लड़की, उसे विनय के पाँव इस जहां में सबसे सुन्दर लगते |
विनय ने ही बात शुरू की....दोनों में बाते हुई पर न होने जैसे ही ..
मनीषा ने कहा- शादी मुबारक हो | अब तो उस शहर में रहेंगे आप..कैसा मौसम है वहा का.. सोचती हूँ मैं भी वहां आ जाऊं..
विनय- हाँ अच्छा सोचा है आने वाले को कौन रोक सकता है तुम भी आ जाओ.. पर वहा Bachelors को कमरा Rent पर आसानी से नहीं मिलता |
मनीषा- मैंने शादी कर ली है... और बच्चे मेरे होंगे नहीं.. और दुबारा शादी मैं नहीं करुँगी |
ओ हाँ.. वो तस्वीर से शादी जिसे तुमने किसी को दिखाया नहीं था |
जिसे तुमने मानसिक विवाह का नाम दिया था |
हाँ... सारे रिश्ते मन के ही तो है.. मन अगर न स्वीकार करे तो क्या है..
हाँ तुम से कौन जीतेगा मेरी अम्मा ...
विनय याद है उस लड़के का क्या नाम है ?
हाँ.. बताया तो था.. विक्रम था शायद..!!
हाँ.. पर सच ये है ऐसे किसी लड़के को मैं नहीं जानती... उस लड़के का नाम विनय है...विनय श्रीवास्तव | वो आप है..
मनीषा अपना सच कह चुकी थी.. जैसे सांस रुक गई थी उसकी..सांस ऐसे फूल गई जैसे मील भर
भाग कर किसी बच्चे की फूल जाए..
माहौल में ऐसी शांति छा गई.. की बहती हवा भी शोर करती सी लग रही थी..
वो ख़ामोशी विनय की आवाज़ से टूटी- मनीषा मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी.. तुम cheep हो..चरित्रहीन हो..तुमने मुझे धोखा दिया है...
वो बस इतना बोल सकी- मैं चरित्रहीन नहीं हूँ...
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फोन की घंटी ने उसकी तन्द्रा को तोडा था वो अपने अतीत से बाहर आई... दूसरी तरफ मां की आवाज़ थी..
कैसी है मीनू.. मुंबई से कब आओगी ..याद है न परसों लड़के वाले आयेंगे..
अम्मा , मैं कह चुकी हूँ .. मैं दुबारा शादी नहीं करुँगी .. कह कर उसने फोन रख दिया ..
नोट- इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है.. वास्तविक जीवन से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है .. :)